battle of bihar politics :- chandan jha
बिहार के मधुबनी में पीएम मोदी की रैली को लेकर सियासी गलियारों में हलचल मची हुई है! 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के मौके पर मधुबनी में पीएम मोदी की जनसभा थी, जो कई मायनों में अहम मानी जा रही थी। पहलगाम आतंकी हमले के बाद पीएम का पहला सार्वजनिक कार्यक्रम, बिहार को 13,480 करोड़ की सौगात, और एनडीए की एकजुटता का प्रदर्शन—सब कुछ दांव पर था। लेकिन सूत्रों की मानें तो इस रैली में भीड़ जुटाने में स्थानीय बीजेपी नेताओं ने निराश किया।
कहा जा रहा है कि पीएम मोदी इस बात से नाराज़ थे कि मधुबनी जैसे मिथिलांचल के गढ़ में, जहां पान, माछ, और मखाना की संस्कृति के साथ राष्ट्रवाद का जोश होना चाहिए था, वहां उत्साह की कमी दिखी। सूत्रों का दावा है कि पीएम ने स्थानीय नेताओं की निष्क्रियता पर आपत्ति जताई और जल्द ही "बिना जनाधार" वाले नेताओं पर गाज गिर सकती है। क्या बीजेपी के स्थानीय नेतृत्व में जनाधार की कमी है? या फिर बिहार चुनाव से पहले कोई और सियासी खेल चल रहा है?
रैली की तैयारी में केंद्र और राज्य का सरकारी तंत्र महीनों से जुटा था। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, विजय सिन्हा, और जेडीयू के संजय झा जैसे दिग्गजों को भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी दी गई थी। दावा था कि मधुबनी सहित 13 जिलों से 5 लाख लोग पहुंचेंगे। लेकिन अगर भीड़ नहीं जुटी, तो सवाल उठता है—क्या बीजेपी का राष्ट्रवाद का मुद्दा बिहार में फीका पड़ रहा है? या फिर नीतीश कुमार की जेडीयू ने रैली में कोई अंदरूनी खेल किया?
पहलगाम हमले के बाद रैली को शोक सभा में बदला गया, कोई स्वागत-फूल माला नहीं हुआ। फिर भी, विपक्ष ने रैली को "नेशनल ड्रामा" करार देते हुए बीजेपी पर सवाल उठाए। यह भी चर्चा है कि पीएम आज रैली में आने को लेकर उत्साहित नहीं थे, लेकिन एनडीए की एकता दिखाने के लिए पहुंचे। क्या स्थानीय नेताओं ने इस मौके को गंवा दिया?
बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और बीजेपी-जेडीयू गठबंधन नीतीश के नेतृत्व में "2025 फिर से नीतीश" का नारा बुलंद कर रहा है। लेकिन अगर मधुबनी जैसी रैली में जनता का जोश ठंडा रहा, तो क्या बीजेपी का राष्ट्रवाद और विकास का एजेंडा लोगों को लुभा पाएगा? या फिर नीतीश की "पलटीमार" छवि और जेडीयू की रणनीति बीजेपी के लिए चुनौती बनेगी?
सवाल कई हैं:
क्या बीजेपी के स्थानीय नेताओं में जनाधार की कमी है?
क्या जेडीयू ने रैली में जानबूझकर कम जोर लगाया?
क्या बिहार में राष्ट्रवाद का मुद्दा अब पुराना पड़ चुका है?
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